गुरुवार, 9 मई 2013

फूलों के बीज ....


मानसून आते ही 
ठंडी-ठंडी हवायें 
सरसराने लगती है 
हृदयाकाश में छाये 
भावों के मेघ 
मन की धरती पर 
बरसने को उतावले 
हो जाते है ...
बारिश की इन 
भाव भरी रिमझिम 
फुहारों से जब 
मन की मिट्टी 
गीली होने लगती है 
तब बो देती हूँ 
इस गीली मिट्टी में 
फूलों के
मन पसंद बीज 
और जब यह बीज 
टूटकर,गलकर
अंकुरित हो 
पौधे हवावों की 
सरसराती ताल पर 
फूलों सहित 
झूम झूम कर नाचने, 
गीत गाने लगते है 
तब फूलों की 
इस सुगंध से 
सारा जीवन महकने 
लगता है  जैसे .....!

( फूलों के बीजों का अभाव है 
  नहीं तो मिट्टी में भी फूल 
  छिपे होते है ..)

8 टिप्‍पणियां:

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

आपकी यह पोस्ट आज के (०९ मई, २०१३) ब्लॉग बुलेटिन - ख़्वाब पर प्रस्तुत की जा रही है | बधाई

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

मन भी गीली मिट्टी ही है, विचारों के बीज इसी में ही फ़लते फ़ूलते हैं, बहुत ही सुंदर बिंब लिया. शुभकामनाएं.

रामराम.

Ramakant Singh ने कहा…

भाव ऐसे ही जगते हैं और पल्लवित होते हैं

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

नवसृजन का सुखद भाव..... सुंदर

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सुन्दर भाव लिए ... सृजन करती रचना ...

कुमार राधारमण ने कहा…

मन की इस मिट्टी में
बीज बोए पलने को
भावों के मेघ बीच
फूलों के खिलने को!

Unknown ने कहा…

मन भी गीली मिट्टी की मानिंद होता है जिसमेँ भावोँ के बीज पल्लवित और पुषपित होते हैँ । शुभकामनाएँ

Unknown ने कहा…

मन भी गीली मिट्टी की मानिंद होता है जिसमेँ भावोँ के बीज पल्लवित और पुषपित होते हैँ । शुभकामनाएँ