शनिवार, 10 नवंबर 2012

रात की निस्तब्धता को चीर कर ...


विश्वास
श्रद्धा की 
ज्योति 
ब भी 
गमगाने
लगती है 
तब तुम 
चूपके से 
घर मेरे 
आ जाते हो 
बुझते इन 
दीपों में 
स्नेह तेल
भर जाते हो 
रात की    
निस्तब्धता को 
चीर कर ...

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

एक दिन का देवता ....


कल वर्ष भर के 
सारे सुप्त सुख 
लौट आये थे
एक दिन में,
आल्हादित हुआ 
था मन अपने इस
एक दिन के 
भाग्य पर 
समय और भाग्य ने 
एक दिन का देवत्व 
होने का गौरव 
जो प्रदान किया था !
दुसरे दिन ...
सुबह पांच बजे 
आलार्म का 
कर्णकर्कश स्वर 
मानो कह रहा था 
अगर एक दिन का 
देवता होने का भ्रम 
दूर हुआ हो तो उठो 
"उठो ...देव 
कितने सारे काम 
करने है ..
डेयरी से दूध लाना है 
चाय बनानी है 
पीने का पानी 
नल से भरना है 
सब्जी लानी है 
गिनती बढती जा
रही थी  .....!

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

हम भी महक ले जरा .....

चाँद ,
महक तुम्हारी
बढ़ जायेगी खास
फलक पर आ
हम भी महक
ले जरा ...

जी भर कर
निहार लेंगे
तूम  भी
निहार लो
हमे  जरा ....

आज
बादलों में क्यों
छूप गये हो तूम
स्याह बादल
हटाओ जरा ....