शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2007

जीवन को सफ़ल बनाऊ कैसे

तू आज बता दे फूल मुझे
मैं तुझ सी खिल पाऊं कैसे
तेरे जीवन पथ पर बिछे हैं कांटे
फिर भी उर में मुस्कान समेटे
पल-पल हवा के झोंके से,
खुशबू जग में बिखराता है तू
तुझ जैसी खुशबू बिखराकर
जीवन को महकाऊ कैसे
में तुझ सी खिल पाऊं कैसे ?
सुबह को खिलता साँझ मुरझाता
मंदिर मजार पर बलिदान चढ़ता
कितना सफ़ल है जीवन तेरा
मुझको खलती मेरी नश्वरता
तुझ जैसा बलिदान चढा कर
जीवन को सफ़ल बनाऊ कैसे ?
मै तुझ सी खिल पाऊं कैसे ?

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